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|रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप'
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<poem>

अहसासों को ऐसे चाला जाएगा
रफ़्ता-रफ़्ता शेर निकाला जाएगा

नश्शा-नश्शा ज़ुल्फ़ों की अँगड़ाई में
कैसे अपना होश सँभाला जाएगा

जाने कैसा ख्व़ाब अभी देखा मैं ने
चाबी होगी, उस में ताला जाएगा

अपने भाले से कह दे दुश्मन-जानी!
मुझमें, केवल मेरा भाला जाएगा

वक़्ते-फ़ुर्सत खाली गगरी को भी 'दीप'
बेजा दसियों बार खँगाला जाएगा
</poem>