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14:47, 23 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप'
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<poem>
वही-वही क्या बात बतानी जाने दो
एक था राजा एक थी रानी जाने दो
कुछ पल का ठहराव भी नहीं है जिसमें
बहता है तो बहे वो पानी जाने दो
ख़ुद को अच्छा ही लिक्खेंगे गर लिक्खें
अपनी बातें आप-ज़ुबानी जाने दो
जीवन की बदली से कभी शिकायत की ?
फिर क्यों आई धूप सुहानी जाने दो
क़द्र कहाँ है यार यहाँ अहसासों की
फिर भी है मीरा दीवानी जाने दो
हम दोनों की माने कोई..ना माने
हम ने तो है सबकी मानी,जाने दो
जितना है उतने में जल बुझ जाओ 'दीप'
नहीं है सरसो नहीं है घानी जाने दो
</poem>