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12:40, 26 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष
|अनुवादक=
|संग्रह=पीठ पर आँख / इंदुशेखर तत्पुरुष
}}
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<poem>
एक अदालत चल रही दिन-रात
वही वादी, वही प्रतिवादी
वही आरोप-प्रत्यारोप
वकील, दलील, गवाह
कुछ भी तो नया नहीं।
अजीब सनकी है न्यायाधीश
न थकता, न ऊबता
न फैसला सुनाता
न अदालत बर्खास्त ही करता।
तैरना यहां मृत्यु है, डूबना-जीवन।
</poem>