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देव / कैलाश पण्डा

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|संग्रह=स्पन्दन / कैलाश पण्डा
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<poem>
हे देव
मैने तुम्हारे लिए
मन्दिर का निर्माण कर लिया है
मेरे ह्रदय के अन्तः स्थल को
कंकड़-पत्थर से विहीन कर
समतल कर
शुद्ध आहार विहार से निर्मित
सप्त धातुओं से
शरीर की समस्त कोशिकाआंे की
दीवारों पर लेपन कर लिया है
मैने साधना रूपी नाड़िका यन्त्र से
रक्तकणों को
ऊर्ध्वगामी विधि से शोधन कर
समस्त वृत्तियों का परिमार्जन कर लिया है
अतः मेरा यह अंतः
तुम्हें स्वतः ही पुकारता है
मैंने कल्पनारूपी औजार से
एवं भावनारूपी मिट्टी से
मेरे अन्तः करण में
तुम्हारी मूर्ति को आकार दिया है
हे देव !
तुम्हारी उस मूर्ति को
मेरे शरीर में
जलरूपी प्रवाहित रक्त से
अब सिच्चित करूंगा
किन्तु उसे कभी भी
अनावरण नही करूंगा

</poem>
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