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13:41, 27 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कैलाश पण्डा
|अनुवादक=
|संग्रह=स्पन्दन / कैलाश पण्डा
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<poem>
जीर्णोद्धार करो प्रभु मेरे
जीर्णोद्धार करो मन मंदिर का
जहां जन्म हुआ तेरा
वह भू-भाग
कहीं और नहीं है
जब से जाना मैने तुझको
मेरा यह तन्त्र
जन्म स्थली तुम्हारी
ओ मुगल परम्परा का निर्वाह
अब नहीं
हम सभ्य युग के शिष्ट लोग
अतीत की काली छाया से दूर
कैसा मनोरोग लिए हम....
अन्तर में विकसित हो
सुन्दर र्मिस्जद एवं मन्दिर
ना गुम्बद ढहे
ना
प्रातः सायं पूजा अजान
चुपचाप चुपचाप
जीर्णोद्धार करो प्रभु मेरे
जीर्णोद्धार करो मन मन्दिर का
</poem>
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