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08:18, 30 दिसम्बर 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=मनोज चारण 'कुमार'
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<poem>
हम थार थळी के राजस्थानी,
हम असली जीवन जीते हैं,
हम अब भी संघर्ष में जीते हैं,
तीनसौ फुट खोदते हैं कुआ,
तब ही पानी पीते हैं,
हम थार थळी के राजस्थानी,
हम संघर्षों में जीते हैं।
जितना गहरा है यहाँ पानी,
उतनी गहराई मानस में है,
उतने ही मजबूत हैं रण में,
उतने ही आगे साहस में है,
साहस और शौर्य की कहानी,
हर कदम पे नई लिखते हैं,
हम थार थळी के राजस्थानी,
हम संघर्षों में जीते हैं।
सूरज आकर जिस धरती पर,
अपना यौवन पा जाता है,
घनी तपिस में तपकर टीला,
कुंदन बनकर निखर जाता है,
किल्विष ठहरता नहीं यहाँ पर,
पापी जरा न जीते हैं,
हम थार थळी के राजस्थानी,
हम संघर्षों में जीते हैं।
ऊँचे टीले पर बैठ बजाता,
चंदा बंसी की तान निराली,
मरवण सी चहके तब धरती,
खिलती पदमण ज्यों मतवाली,
कुरजां उङती जब ले संदेशा,
परदेशी प्रीतम तरसते हैं,
हम थार थळी के राजस्थानी,
हम संघर्षों में जीते हैं।
बहता पवन जब इसकी डगरिया,
भर जाती उसकी भी गगरिया,
कभी शीत भर लहर चलाता,
कभी लू बन कहर दिखाता,
बासन्ती मस्ती को लेकर,
हम मस्ती में पीते है,
हम थार थळी के राजस्थानी,
हम संघर्षों में जीते हैं।
आबू, पुष्कर, लुहागर, गलताजी,
डिग्गी कल्याण-धणी, सालासर में बालाजी,
माँ करणी और ख्वाजा पीर है,
गोगा, हड़बू, रामदेवजी में सबका सीर है,
तो नाथपंथ और दादूपंथी,
यहां भक्ति-रस को पीते हैं,
हम थार थळी के राजस्थानी,
हम संघर्षों में जीते हैं।
महाराणा का मेवाड़ी डंका,
गंगासिंह राठौड़ी रणबंका,
भाटी मरुथल के रखवाले,
कच्छसुत भी ढूंढाड़ संभाले,
लोहागढ़ के सुरजमल बड़भागी,
जिसने रण में, अंग्रेज़ तक जीते हैं,
हम थार थळी के राजस्थानी,
हम संघर्षों में जीते हैं।
मीरां, पदमण, पन्ना, माणक,
इमरतादेवी अरु हाड़ी रानी है,
अद्भुत है इतिहास हमारा,
और विलक्षण पूरी कहानी है,
सतीयों सूरों और पीरों की,
धरती पर हम जीते है,
हम थार थळी के राजस्थानी,
हम संघर्षों में जीते हैं।
ये धरती है पावन प्रांगण वीरों का,
जहां खेलता हर बालक खेल शमशीरों का,
तो गढ़ चितौड़ी पत्थर देते,
परिचय अद्भुत वीरों का,
केसरिया बाना जो पहने,
करे सामना तीरों का।
जौहर की ज्वाला से जहां पद्मिनी,
एक नया इतिहास रचाती है,
अद्भुत है ये धरा अद्भुत इसकी थाती है,
हम इस थाती को जीते है,
हम थार थळी के राजस्थानी,
हम संघर्षों में जीते हैं।
</poem>