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|रचनाकार=मनोज चारण 'कुमार'
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<poem>
मैं जानता हूँ,
सही नहीं हर बार मैं,
पर,
नहीं करता झूठ का कारोबार मैं।
नहीं लिखता मैं सुभाषित,
अपने नाम के आगे भी,
नहीं करता बातें बङी मैं,
नहीं है मुझको ज्ञान अभी,
पर,
मेरी किसी बात से नहीं करता,
किसी को परेशान कभी।
मैं नहीं जानता ऊँचाई को,
ना है छंदो का ज्ञान मुझे,
मैं नहीं मंच की शोभा भी,
नहीं कविता का भान मुझे।
पर,
मैं मर्यादित रहता,
हूँ अपनी मर्यादा में,
मैं रखता मान मन में अपने,
नहीं तोङता लकीरों को,
जो खींची है,
मेरे पूर्वजों नें इस जग में।
मैं केवल शक्तिपुत्र नहीं,
मैं शक्ति गौरव जानता हूँ,
हास्य और उच्छृंखलता,
की परिभाषा जानता हूँ।
मैं शक्तिसुत का दंभ भरता,
हर नारी की पूजा करता,
केवल दिखावा नहीं है मेरा,
मैं मेरे शब्दों को जीता हूं,
इसीलिए मैं हर मंथन में,
कालकूट को पीता हूँ।
माँ मुझे शक्ति देना,
तेरे ही दम पर अङता हूँ,
माँ मुझे परवाह न जग की,
तेरे दम पर लङता हूँ।
मैं वाणी का वरद पुत्र हूँ,
चाह नहीं है चांदी की,
मैं मेरी कविता में रहता,
परवाह नहीं है आंधी की।
मैं मेरी नजरों में न गिरूंगा,
दुनियां भले जो चाहे कह दे,
माँ हिंगल़ाज शरण दे तेरी,
तेरी शक्ति मुझमें भर दे,
मुझमें भर दे,
मुझमें भर दे।।

</poem>
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