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झूला / कन्हैयालाल मत्त
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19:46, 19 जनवरी 2018
ख़ून रवानी करता।
नई ताज़गी मिल जाती है,
श्रम भी
नहीइं
नहीं
अखरता।
</poem>
अनिल जनविजय
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