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फुटकर शेर / बशीर बद्र
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03:38, 23 जनवरी 2018
5.इसीलिए
ति
तो
यहां अब भी अजनबी
हुं
हूं
मैं,
तमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूं मैं।
</poem>
Abhishek Amber
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