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14:29, 28 जून 2008 शाम को आने का वादा,
इस दिलको तसल्ली दे
गया,
आनेका कह कर तुमने,
हमे सुकूँ कितना दिया
!
अमलतास के पीले झूमर
भर गये, आँगन हमारा,
साँझ की दीप बाती
जली,
रोशन हो गया हर
किनारा !
पाँव पडे जब दहलीज पर
-
हवाने आकर, हमको
सँवारा,
आँगन से, बगिया तक,
पात पात, मुस्कुराया !
बिँदीया को सजाती
उँगलियोँने,
काजल नयनोँमेँ
बिखेरा,
इत्रकी शीशीसे फिर
ले बूँद,
हमने उन्हे, गले से
लगाया !
घरसे भीतर जाने का
रस्ता,
लाँघ कर, जो भी है,
जाता ,
या आता ! खडी रहती जो,
हमेशा, वो दहलीज है!