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हर कोई चाहता है, {{KKGlobal}}हो मेरा एक नन्हा आशियाँ{{KKRachnaकाम मेरे पास हो, |रचनाकार=लावण्या शाहघर पर मेरे अधिकार हो,पर, यही, मेरा और तेरा , क्योँ बन जाता, सरहदोँ मेँ बँटा,शत्रुता का, कटु व्यवहार?}}
रोटी की भूख, इन्सानाँ कोहर कोई चाहता है, <br>चलाती हैहो मेरा एक नन्हा आशियाँ<br>काम मेरे पास हो,<br>रात दिन के फेर मेँ घर परमेरे अधिकार हो,<br>चक्रव्यूह कैसे पर, फँसाते हैँ यही, मेरा और तेरा , <br>सबकोक्योँ बन जाता, मृत्यु के पाश सरहदोँ मेँ बँटा,<br>शत्रुता का, कटु व्यवहार?<br><br>
लोभरोटी की भूख, लालच, स्वार्थ वृत्त्तिइन्सानाँ को,<br>अनहदचलाती है,धन व मद का <br>नहीँ रहता कोई सँतुलन!मँ ही सच रात दिन के फेर मेँ पर, मेरा धर्म ही सच!<br>सारे धर्मचक्रव्यूह कैसे , वे सारे, गलत फँसाते हैँ !, <br>सबको, मृत्यु के पाश मेँ ?<br><br>
क्योँ सोचतालोभ, ऐसा है आदमी ??लालच, स्वार्थ वृत्त्ति,<br>भूल करअनहद, अपने से बडा धन व मद का <br>नहीँ रहता कोई सँतुलन!<br>मँ ही सच , मेरा धर्म ही सच!<br>सारे धर्म, वे सारे, गलत हैँ !<br><br>
क्योँ सोचता, ऐसा है आदमी ??<br>भूल कर, अपने से बडा सच!!<br><br> मनोमन्थन है अब अनिवार्य,<br>सत्य का सामना, करो नर,<br>उठो बन कर नई आग,<br>जागो, बुलाता तुम्हेँ, विहान,<br>
है जो,आया अब समर का !