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( हाइकु )
* [[ओस की बूँद / जगदीश व्योम]]
 
1
 
नदी बनाता
 
सोख हवा से नमीं
 
वृद्ध पहाड़।
 
2
 
छीन लेता है
 
धनी मेघों से जल
 
दानी पहाड़
 
3
 
अनाम गंध
 
बिखेर रही हवा
 
धान के खेत।
 
4
ओस की बूँद
 
कैक्टस पर बैठी
 शूली पे सन्त ।पर सन्त। 5 छिड़ा जो युद्ध रोयेगी मानवता हँसेंगे गिद्ध। 6 बिना धूरी की चल रही है चक्की पिसेंगे सब। 7 गंध के बोरे लाता है ढो ढोकर हवा का घोड़ा। 8 धूप में तपा पा गया सुर्ख रंग टीले का टेसू। 9 चीखता रहा झील पार चकोर निर्मोही चाँद। 10 उगने लगे कंकरीट के वन उदास मन।  
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