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{{KKRachna
|रचनाकार=मनोहर 'साग़र' पालमपुरी
}}
[[Category:ग़ज़ल]]

रात कट जाये तो फिर बर्फ़ की चादर देखें

घर की खिड़की से नई सुबह का मंज़र देखें


सोच के बन में भटक जायें अगर जागें तो

क्यों न देखे हुए ख़्वाबों में ही खो कर देखें


हमनवा कोई नहीं दूर है मंज़िल फिर भी

बस अकेले तो कोई मील का पत्थर देखें


झूट का ले के सहारा कई जी लेते हैं

हम जो सच बोलें तो हर हाथ में ख़ंजर देखें


ज़िन्दगी कठिन मगर फिर भी सुहानी है यहाँ

शहर के लोग कभी गाँओं में आकर देखें


चाँद तारों के तसव्वुर में जो नित रहते हैं

काश ! वो लोग कभी आ के ज़मीं पर देखें


उम्र भर तट पे ही बैठे रहें क्यों हम ‘साग़र!’

आओ, इक बार समंदर में उतर कर देखें