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05:02, 25 फ़रवरी 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार= मानोशी
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<poem>
मां तेरी यादों के आगे
जग के सारे बंधन झूठे|
जिस उँगली को हाथों थामे
जीवन पथ पर चलना सीखा,
प्राण ऋणी हैं, जिस अमृत के
उस अमृत बिन जीवन फीका,
याद नहीं करने को कहते
बंधु- बांधव, हित में मेरे,
किन्तु भूलकर हर्ष मनाऊँ
इस से अच्छा जीवन छूटे।
बहुत कठिन है सूखे मरुथल
में पानी बिन प्यासे चलना,
मरीचिका से आस लगाये
अपने को ही खुद से छलना,
मेरा हृदय बना है तेरी
स्मृतियों से सज्जित इक आंगन,
जैसे चौबारा तुलसी का
पूजा का यह क्रम ना टूटे
मां तेरी यादों के आगे
जग के सारे बंधन झूठे।
</poem>