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तुम फेंक देते होतंग गलियों के भीतरवह थालीसीलन भरेजिसमें मैं झाँकती हूँतहखाने नुमा घर के भीतरअपने अक्स कोसीढियों पर बैठीमेरी परछाइयाँ भीढील मारती लड़कियों केतुम्हें उद्विग्न कर देते नाखूनों परमारे जाते हैंढीलपटापटठीक उसके सपनों की तरहजो रोज-ब-रोज मारे जाते हैंएक-एक करकेअंधेरे में...
तुम्हारे प्रार्थना घरों के देवताभाग खङ़े होते नहीं लिखी जाती हैंमेरी पदचाप सुनकर! इन पर कोई कहानियाँकविताऔर न ही बनती हैइन पर कोई सिनेमाकि ये कोई पद्मावती नहींजो बदल सके इतिहास के रुख को...
जिस कूंए से होकर मैं गुजरती हूँभूसे की तरहखारा हो जाता हैठूंस-ठूंस करउसका मीठा पानीरखे गये संस्कारउसके माथे मेंभर दी जाती हैंजिसे वे बांध लेती हैंकस करलाल रिबन से...
एक त्याज्य व अछूत कन्या कि वह नहीं खेल सकतीहोते हुए भीखो-खो कबड्डीतुम रांधते हो मेरी देह कोनहीं जा सकती स्कूलमरी हुई मछलियों की तरह! गोबर पाथना छोड़कर...
जो स्वादहीन व गंधहीन होकर भीवह अपने सारे अरमानों कातुम्हारे भोजन लगाती हैं छौंककङ़ाही मेंघुल जाती हूँ नमक की तरहऔर भून डालती हैं उन्हें लाल-लालअपने सपनों को जलने से पहले...
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