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13:59, 26 मार्च 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=करणीदान बारहठ
|अनुवादक=
|संग्रह=झर-झर कंथा / करणीदान बारहठ
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<poem>
काली है कोझी कालपसी,
आ मौत डराणी मुंह बली।
कण नाम कडायो तेरो अे,
शर्मीलो सूणो छिपकली।
काली रांड कुलखणी तन्नै,
कण स्याणै जोड़ी कलियां में।
भीतां ऊपर माख्यां मारै
भल और बताई भलियां में।
दीपक हेतड़ला परवाना,
कर प्यार पूंचज्या चुपवाणी।
तूं पापण हत्यारण बानै,
छिप-छिप खावै मरज्याणी।
सूदी बतलावै कुण तन्नै,
तूं कूटनीत री पटराणी
भोला जीवां री भख करै,
सिर मौर चाल में छिपज्याणी।
मिनखां नै चाल बता दीनी,
घणकरा नीतआ अपणायी।
छिप छिप खावै भोला नै,
सै सीख तेरली सिखलाई।
ऊपर रो भेख भलै पण रो,
मां स्यूं सै सूदी छिपकलियां।
हे देव उबारो अै उजड़ै,
मोती सी मिनखां री लड़ियां।
</poem>