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14:03, 26 मार्च 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=करणीदान बारहठ
|अनुवादक=
|संग्रह=झर-झर कंथा / करणीदान बारहठ
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<poem>
झांझरको होग्यो,
पौ फाटण लागी
कुकु-कु बोल्यो कूकड़लो,
दूर धरा में
उठी गौरड़ी
छोड़ गाबला
सार्यो, पोमचियै रो घूंघटो
घाल पीसणा
चाकी सारै
बैठो पीसण नै
गुण गुणाया पीहरलै रा गीत
दूर बोलियो एक मोरियो
थाम चाकली
मन में बोली
कोजो कूक्यो रै मरजाणा
जरख चढ़ाऊं तनै मोरिया
धाणी पिड़ाऊं कलमूंआ
याद आई पीहरलै री
माऊ-बाबो
बीर-बहन री
डब डब आंखड़ल्यां भरलीं
बस बमिया पाट्या चाकली रा पाट
नेड़ी आये सांवणियां री तीज
</poem>