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बीज / कुमार अजय

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<poem>
म्हैं आछी भांत जाणूं
अर मानूं राजाजी
कै थारी हामळ भरणिया
आज लाखूं हैं
पण वांरी हामळ रौ
कित्तोक अरथ है आज
वा नीं जांणै थूं,
वांरी हामळ मांय
भेळौ है फगत थारौ सोच
हां, अेकल थारौ ई
अर वींरै लारै है अेक लरड़ीचल्लौ
जिकी मांय दिखै
किणी अफीम रौ असर ई,
पण सुण! अैड़ै बगत मांय ई
जिकौ ऊभौ है आज
इण हवा रै साम्हीं
अर बोलै थारै खिलाफ
वींरै लबजां मांय
भेळौ है करोड़ां रौ मूंन
हां मूंन, जिकै रौ अरथ
हरमेस हामळ नीं हुवै
बगतावू बेबसी अर
रीस री सैनांणी मूंन
आवणै वाळै दरोळ रौ
बीज ई तौ हुय सकै।
</poem>
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