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06:34, 1 अप्रैल 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[दुष्यन्त जोशी]]
|अनुवादक=
|संग्रह=कठै गई बा'... / दुष्यन्त जोशी
}}
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<poem>
मन रै माथै
जम्योड़ी है
मैल री परतां
स्यात
इणी कारण
आपां नीं सीख सकां
प्रेम री बातां
पळपळाट करतै
बरतण दांईं हुवै मन
तद ई दीखै
खुद रौ बिम्ब
खुद नै।
</poem>
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