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पाणी / दुष्यन्त जोशी

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<poem>
नदयां रौ पाणी
समंदर में आवै
तद
रस्तै मांय
पड़्या गोळ-गोळ
अनगढ़ पत्थर
शिवलिंग अर साळग्राम रौ
रूप लियां
आपां देखां बेथाक

पाणी बदळै
पत्थरां रौ रूप
पछै मिंदर
अर घरां रै थानां में
थापित कर'र
पुजवावै हरमेस

पाणी
थूं है जीवण
म्हारी संस्कृति रौ
आधार है थूं
तन्नै बारम्बार निवण।
</poem>
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