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|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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<poem>
रोटी की रेडियस, जो तिहाई हुई, तो है।
पूँजी की ग्रोथ रेट सवाई हुई तो है।

घर आपका जला तो किसे कोसने लगे,
ये आग आप ही की लगाई हुई तो है।

खाली भले है पेट मगर ये भी देखिए,
छाती हवा से हम ने फुलाई हुई तो है।

क्यूँ दर्द बढ़ रहा है मेरा, न्याय ने दवा,
ज़ख़्मों के आस पास लगाई हुई तो है।

वर्षों से इस ज़मीन में कुछ भी नहीं उगा,
इसकी लहू से ख़ूब सिंचाई हुई तो है।
</poem>
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