1,477 bytes added,
16:11, 4 अप्रैल 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
पुल के ऊपर से जाते जो गहराई से घबराते हैं।
पुल की रचना वो करते जो खाई के भीतर जाते हैं।
जिनसे है उम्मीद समय को वो पूँजी के सम्मोहन में,
काम गधे सा करते फिर शूकर सा खाकर सो जाते हैं।
जिनकी कोमलता की कसमें दुनिया खाती है वो सारे,
मज़्लूमों की बात चले तो फ़ौरन पत्थर हो जाते हैं।
धूप, हवा, जल, मिट्टी इनमें से कुछ भी यदि कम पड़ जाये,
नागफनी बढ़ते जंगल में नाज़ुक पौधे मुरझाते हैं।
जो थे भारी, ज्ञान-जलधि में डूब गये वो चुप्पी साधे,
हल्के लोग हमेशा जल में शोर मचाकर उतराते हैं।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader