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|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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<poem>
तेज़ दिमाग़ों को रोबोट बनाते हैं हम।
देखो क्या क्या करके नोट बनाते हैं हम।

हत्या करते लाखों रेशम के कीड़ों की,
तब जाके रेशम का कोट बनाते हैं हम।

सिक्का यदि बढ़वाना चाहे अपनी क़ीमत,
झूठे क़िस्से गढ़कर खोट बनाते हैं हम।

पाँच वर्ष तक हमीं कोसते हैं सत्ता को,
फिर चुनाव में ख़ुद को वोट बनाते हैं हम।

शुद्ध नहीं, भाषा को गन्दा कर देते हैं,
टाई को जब कंठलँगोट बनाते हैं हम।
</poem>
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