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13:05, 8 अप्रैल 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=[[मोनिका गौड़]]
|अनुवादक=
|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
}}
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<poem>
तंतर री घाणी मांय
पीसीजतो लोक
सींचै है रगत सूं
कुरसी रै पागां नैं
जिणसूं कै
थिर रैवै कुरस्यां
दीवाण, तखत अर ताज
आस्वासणां रो नीरो चरतो
लोक रो बळध
घूम रैयो है
तरक्की रै कूड़ रै आसरै
आपरै रगत सूं रंग्यै
झंडै नैं सलामी देंवतो।
</poem>
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