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सार संभाळ / मोनिका गौड़

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|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
}}
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<poem>
करणी पड़ै
सार-संभाळ
मन रा आला खूणां
थोड़ा जाळा लाग्या सगपणां
रंजी जम्योड़ी संवेदनावां नैं
लगावणो पड़ै तावड़ो
बगत रै तपतै साच रो।
पूंछ लिया करूं आंसुड़ां रै पोचै सूं
अंतस रै आईनै छायोड़ी धंवर
अर ठहाको लगावूं तुरत
किणी ई बात माथै
सूखाय देवूं
मुळक रै उजास सूं
सगळी सीऽल,
आलेड़ो
धंवर
ठारी
मांज लेऊं सै नैं
आ ईज म्हारै मांय है नेन्हीक कला
थांरी ऊजळ दुनिया मांय
म्हारो आपो बचावण री

म्हैं लुगाई हूं।
</poem>
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