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09:42, 11 अप्रैल 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार सौरभ
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}}
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<poem>
स्याह रात
फैली उजियारी !!
रोटी देखी
चोखा देखा
कब का भूखा
टूट पड़ा मैं
जाने फिर कब आए मौका
सुबह से अंतड़ी ऐंठ रही थी
खुद से खुद का धोखा देखा !
</poem>