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सरमाएदारी / मजाज़ लखनवी

4 bytes added, 18:00, 8 जुलाई 2008
यह वह आँधी है जिसके रो में मुफलिस का नशेमन है,<br>
यह वह बिजली है जिसकी जद में हर दहकान का खरमन है<br>
यह अपने हाथ में तहजीब का फानूस लेती है,<br>
मगर मजदूर के तन से लहू तक चूस लेती है<br>
यह इंसानी बला खुद खूने इंसानी की गाहक है,<br>