Changes

आना जाना रीत पुरानी /मानोशी

1,361 bytes added, 23:00, 13 अप्रैल 2018
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <poem>आना जा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}

<poem>आना जाना रीत पुरानी
फिर क्यों आँखों बहता पानी |

बिन उसके भी जीवन चलता
बिन उसके भी तो हँसती हूँ,
स्मृतियों से उठना चाहूँ ‘गर
और अधिक गहरे धँसती हूँ,
बसता वह मेरे अन्दर पर
मिलने की ना कहीं निशानी |

शून्य ह्रदय का बढ़ता जाता,
शूल दर्द का धंसता जाता,
किसी अजाने पथ पर बिछती
आँखों का रंग ढलता जाता,
बिन उसके स्नेहिल छाया के
पहले सा ना रही कहानी|

जीवन की पाती पर जितने
लिखे समय ने, क्षण वो बीते
बूँद-बूँद कर जमा किये जो
सुखद पलों के कलसे रीते
क्यों मन पागल रोये ऐसे
जीवन बगिया याद सुहानी|

</poem>