Changes

माँ / भाग १७ / मुनव्वर राना

2,340 bytes added, 15:36, 11 जुलाई 2008
New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मुनव्वर राना |संग्रह=माँ / मुनव्वर राना}} {{KKPageNavigation |पीछे=म...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= मुनव्वर राना
|संग्रह=माँ / मुनव्वर राना}}
{{KKPageNavigation
|पीछे=माँ / भाग १६ / मुनव्वर राना
|आगे=माँ / भाग १८ / मुनव्वर राना
|सारणी=माँ / मुनव्वर राना
}}

हमारे कुछ गुनाहों की सज़ा भी साथ चलती है

हम अब तन्हा नहीं चलते दवा भी साथ चलती है


कच्चे समर शजर से अलग कर दि्ये गये

हम कमसिनी में घर से अलग कर दि्ये गये


गौतम की तरह घर से निकल कर नहीं जाते

हम रात में छुप कर कहीं बाहर नहीं जाते


हमारे साथ चल कर देख लें ये भी चमन वाले

यहाँ अब कोयला चुनते हैं फूलों —से बदन वाले


इतना रोये थे लिपट कर दर—ओ—दीवार से हम

शहर में आके बहुत दिन रहे बीमार —से हम


मैं अपने बच्चों से आँखें मिला नहीं सकता

मैं ख़ाली जेब लिए अपने घर न जाऊँगा


हम एक तितली की ख़ातिर भटकते फिरते थे

कभी न आयेंगे वो दिन शरारतों वाले


मुझे सँभालने वाला कहाँ से आयेगा

मैं गिर रहा हूँ पुरानी इमारतों की तरह


पैरों को मेरे दीदा—ए—तर बाँधे हुए है

ज़ंजीर की सूरत मुझे घर बाँधे हुए है


दिल ऐसा कि सीधे किए जूते भी बड़ों के

ज़िद इतनी कि खुद ताज उठा कर नहीं पहना