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<poem>
जो मुझे अच्छा लगे करने दे बस वो काम तू।
जान-ए-मन सुन, ज़िन्दगी भर रख मुझे गुमनाम तू।
तुझसे पहले कुछ नहीं था कुछ न होगा तेरे बाद,
सृष्टि का आग़ाज़ तू है और है अंजाम तू।
 
जीन मेरे खोजते थे सिर्फ़ तेरे जीन को,
सुन हज़ारों वर्ष की भटकन का है विश्राम तू।
 
डूबता मैं रोज़ तुझमें रोज़ पाता कुछ नया,
मैं ख़यालों का शराबी और मेरा जाम तू।
 
क्या करूँ कैसे उतारूँ, जान तेरा क़र्ज़ मैं,
नाम लिख मेरा हथेली पर, हुई गुमनाम तू।
</poem>
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