{{KKRachna
|रचनाकार=विद्यापति
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<poem>चानन भेल विषम सर रे, भुषन भूषन भेल भारी।<br>सपनहुँ नहि हरि आयल रे, गोकुल गिरधारी।।<br>गिरधारी॥एकसरि ठाठि थाड़ि कदम-तर रे, पछ हरेधि मुरारी।<br>हरि बिनु हृदय दगध भेल रे, झामर भेल सारी।।<br>सारी॥जाह जाह तोहें उधब हे, तोहें मधुपुर जाहे।<br>चन्द्र बदनि नहि जीउति रे, बध लागत काह।।<br>काह॥कवि विद्यापति गाओल रे, सुनु गुनमति नारी।<br>आजु आओत हरि गोकुल रे, पथ चलु झटकारी।।<br>झटकारी॥<br/poem>