460 bytes added,
03:52, 29 अप्रैल 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कल्पना सिंह-चिटनिस
|अनुवादक=
|संग्रह=चाँद का पैवन्द / कल्पना सिंह-चिटनिस
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
सफर ही रहे
मंजिल न मुझको भाती है,
सफर की तपिश
मंजिल की राहतों से बेहतर है।
</poem>