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ऐसे साँचे रहे नहीं अब / नईम
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10:34, 14 मई 2018
<poem>
ऐसे साँचे रहे नहीं अब
जो अपने
अनुरूप्
अनुरूप
ढाल लें।
खरी धातु के सिक्कों-सा
हाटों-बाज़ारों में उछाल दें।
Sharda suman
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