<poem>
वह आता--
दो टूक कलेजे के को करता , पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को-- — भूख मिटाने कोमुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता--—
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलायेफैलाए,बायें बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते,और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाये।बढ़ाए।
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?--
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए! ठहरो ! मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूँगाअभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुमतुम्हारे दुख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा।