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वन्दे मातरम् !बीच सड़क पण्डाल बनेगाजो भी तुम लोहार को जानते हो हर हाल बनेगाजैकारा हरकिरतन होगानिसदिन व्योम-प्रकंपन होगाइसीलिए तो घर-घर जाकरमाँग रहे हैंचन्दे मातरम् !न, कवि?
गुण्डागर्दी दुश्चरित्रताहमें जानते हो न इनका नाम भी पतासदा दूध कि जीवन के धुले हुए हमऔजारदेश-धरम को तुले हुए हमजो हमको गन्दा कहते उसकी भट्ठी में लेते हैंवे तो ख़ुद हैंगन्दे मातरम् !कैसे आकार?
जिनसे भारत-भूमि उदासीजानते हो नम्लेच्छ अवर्ण तथा वनवासीकुलच्छनी निर्लज्ज नारियाँरचनाकारों किस आँच के साँचे में ढलती है लोहार की कुठारियाँसबको हम चौरस कर देंगेछवि?मार-मारकरतुम्हारी छविरन्दे मातरम् !किस साँचे में ढलती है, कवि?
भारत हिन्दुस्थान हमारातुमने सुनी है नभगवा संघ-विधान हमारासन्नाटे को चीरती, दिशाओं को धड़कातीहमीं महत्तम लट्ठ नचातेदूर तक जातीहमीं जगत्-सर्वोत्तम, मातेउसके घन की ठनकती आवाज?सिवा हमारे जो हैं सब कहाँ तक सुनाई देता हैतुम्हारे शब्दों का साज? तुमने सुनी है न वह कहावतकि तभी तक चलेगी लोहार की साँसजब तक चलेगी उसकी भाँथी?मेरे साथी! क्या तुम अपनी बाबतकह सकते होऐसी ही एक कहावत?बता सकते होकि लोहार के सपने किस आग में जलते हैंतव चरणों जिसके बाद उसकी भट्ठी मेंकुदाल केबदलेफन्दे मातरम् !कट्टे ढलते हैं? एक लोहार की भविता कोतुम जानते हो न, कवि?सच कहना, अपनी कविता कोतुम जानते हो न, कवि?
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