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ज़ीस्त करने को मेरे पास बहुत कुछ है अभी
आज की शब तो किसी तौर गुज़र जाएगी
 
आज के बाद मगर रंगे-वफ़ा क्या होगा
इश्क़ हैरां है सरे-शहर सबा क्या होगा
मेरे क़ातिल! तिरा अंदाज़े-ज़फ़ा क्या होगा
 
आज की शब तो बहुत कुछ है मगर कल के लिए
एक अंदेशा-ए-बेनाम है और कुछ भी नहीं
देखना ये है कि कल तुझ से मुलाक़ात के बाद
रंगे-उम्मीद खिलेगा कि बिखर जायेगा
वक़्त परवाज़ करेगा कि ठहर जायेगा
जीत हो जायेगी या खेल बिगड़ जायेगा
ख़्वाब का शहर रहेगा कि उजड़ जायेगा।
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