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13:39, 20 जून 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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{{KKCatGhazal}}
<poem>दिल की रंगीनियों से वाक़िफ़ हैं
फूल हैं, तितलियों से वाक़िफ़ हैं
आंधिओं की हंसी उड़ाएंगे
जो हमारे दियों से वाक़िफ़ हैं
हम अगर चुप हैं चुप ही रहने दे
हम तेरी ख़ामियों से वाक़िफ़ हैं
सर्द मौसम की चाँदनी रातें
मेरी बेचैनियों से वाक़िफ़ हैं
जिनको सच बोलने की आदत है
पाँव की बेड़ियों से वाक़िफ़ हैं
</poem>