Changes

<poem>
मेरी तन्हाई मेरा जुनूं और मैंइमारत एक आलीशान है दिलए शबे हिज्र कितना चलूं और मैंकई दिन से मगर वीरान है दिल
डाल दे क़ैद ख़ाने फिर से मुझेकभी ग़ालिब के जैसा शोख़ चंचलतेरे दरबार में सर निगूं और मैं ?कभी तो मीर का दीवान है दिल
कर रही है ज़रूरत तक़ाज़ा मगरतुझे क्या हमने समझाया नहीं थातुझ पे कोई क़सीदा लिखूँ और मैं ?मोहब्बत में बड़ा नुक़्सान है दिल
तुझ को पाने किसी की धुन में भटकते रहेबात सुनता ही नहीं हैएक बे चारा बहुत गुस्ताख़ नाफ़रमान है दिल बे सुकूँ और मैं
वो तो घर के चिराग़ों से मजबूर हूंतबाही का नहीं अफ़सोस लेकिनआंधियो! वरना तुम रवैये से डरूं और मैं ?तेरे हैरान है दिल
</poem>