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माँ / मानसिंह राठौड़

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<poem>
भगतवसल री लीला भारी,
रूप अनंत रचाया ।
मूरत सौणी है ममता री,
अंबा नांव उपाया ।।

नव महिणा रेवै अध निरणी,
पूत पेट में पाळै ।
जाये रे सुख खातर जणणी,
गात आपरो गाळै ।।

सकल रात गीला में सोवै,
सूखे पूत सुलावै ।
आखी रात ओजको करती
आँख्यां नींद न आवै ।।

आंसूड़ा वा पोंछ आपरा,
रूड़ी निजरां राखै ।
दिवस पूरो हाजरी देवै,
थमे नहीं भल थाकै ।।

लाडां कोडां रखै लालनैं
अंतस नेह अपारा ।
दु:ख में जद लाल नै देखै,
पुरसै नेह पिटारा।।

तोड़ बाँध वे तकलीफां रा,
मन मांही मुसकावै ।
प्रीत रीत सूं घर फुलवारी,
मधरी सी महकावै ।।

ईस तणो अवतार कहीजै,
नित-नित शीश निवाऊं ।
अनंत है आशीष आपरी,
जामण वारी जाऊं ।।
</poem>
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