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12:02, 25 जून 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मानसिंह राठौड़
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>
।।१।।
हिलमिल रहत हमेश,होवै भेळा बाथ भर ।
करै नहीं'र कलेष,मन रा मीठा मानवी ।।
।।२।।
वैरी बोले वैण,करै रिछाई सुण नहीं ।
संतां हन्दा सैण,मन रा मीठा मानवी ।।
।।३।।
चौपाळां रो चाव,बैठ हथायां मिळ करै ।
भरै प्रेम रा भाव,मन रा मीठा मानवी ।।
।।४।।
नेणों अणहद नेह,देय अनूठो ओळबो ।
मनवारां रो मेह,मन रा मीठा मानवी ।।
।।५।।
अमट रखै आबाद,पूछै सुख अर दुक्ख री ।
मिनख तणी मरजाद,मन रा मीठा मानवी ।।
।।६।।
पल पल 'मान'पिलाय,प्याला नित रस प्रेम रा ।
राखै हिये लगाय,मन रा मीठा मानवी ।।
</poem>