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|रचनाकार=गन्धर्व कवि पं नन्दलाल
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<poem>
पाटी जा रही भूजा आपकी, कज़ा सम समझ ध्वजा आपकी,
लेजा जा वरदान दिया ।। टेक ।।

गुरु द्रोही महापापी हो, मर्यादा तोङन आला,
रस्ते अंदर कुआं खुदरया, आंख मींच दोङन आला,
फोङन लाग्या शीला आणके, भोला भाला तनै जाणके,
बल तुझको शैतान दिया।।

बेईमान की नाँव डूबज्या, भरै पाप की ठाढी,
दुष्ट आपको लगै पता, यह लता धर्म की बाढ़ी,
जब यह गाडी चलती हो गयी, म्हारी भी गलती हो गयी,
विषियर को प्या पान दिया।।

भूण्ड मारता मूण्ड पुरिष मैं, षटपद रहै जहां बाग़ हो,
शीलवंत अवगुण को तजदे, गुण तजै निर्भाग हो,
ना काग तृप्त हो मेवा से, मैं खुश होके तेरी सेवा से,
कर वीरों में प्रधान दिया।।

शंकरदास कहै नहीं कोई दूजी, हरि भजन सी टेक हो,
केशवराम नाम सच्चा है, वही सनीपी ऐक हो,
जिमी भेक मग्न जल वृष्टि से, नंदलाल गुरु दयादृष्टि से,
मद मान सकल दुख भान दिया।।
</poem>
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