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{{KKRachna
|रचनाकार=राजेराम भारद्वाज
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<poem>
विनय हमारी सुन त्रिपुरारी, शिव शंकर भगवान,
शरण तेरी आया हूँ ।। टेक ।।

मंगल के मूल कर माफ भूल, कर मै त्रिशूल थारे साज रहा,
गिरजेश महेश गणेश शेष, धवलेश वृष पै विराज रहा,
थार ढम ढम ढमरु बाज रहा, नंदी भृंगी कर गान।।

जग का करता धरता हरता, भरता है भंडार तूही,
लख हाल चाल सब जाल टाल दे, दयाल दातार तूही,
भव सागर करता पार तूही, पल मे करता कल्याण।।

सुख करण परण रख चरण शरण है, दुख हरण तू कहलावै,
दुख जार टार सब भार तार उँकार, पार तेरा ना पावै,
षट चार अष्ट दस बतलावै, तेरी लीला ज्योति महान।।

सिद्ध हो काम तमाम नाम अष्टयाम, खाम तेरा जो गाता,
नन्दलाल हाल तत्काल कहै सब ख्याल, जाल सब टल जाता,
पद भीमसैन कथ दर्शाता, शंकर का धर कै ध्यान।।
</poem>
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