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19:53, 7 जुलाई 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=राजेराम भारद्वाज
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|संग्रह=
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<poem>
जुए कैसा खेल नहीं, जै हार ना हो तो,
चोरी कैसा मजा नहीं, जै मार ना हो तो ।। टेक ।।
श्री गंगा कैसा नीर नहीं, और विष्णु जैसा तीर नहीं,
त्रिया जिसा वजीर नहीं, बदकार ना हो तो।।
शान्ति सम हथियार नहीं , धर्म सरीखा यार नहीं,
भाईयों जैसा प्यार नहीं, तकरार ना हो तो।।
फूलै फलै फिरांस नहीं, बेईमान का विश्वास नहीं,
इस बोली जिसा मिठास नहीं, जै खार ना हो तो।।
भगती हो सै लाल लखीणा, कुंदनलाल हरी रस पीणा,
नन्दलाल कहै क्या जीणा, पर उपकार ना हो तो।।
</poem>