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|रचनाकार=गन्धर्व कवि प. नन्दलाल
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<poem>
'''सांग:- द्रोपदी स्वयंवर (अनुक्रमांक-6)'''

'''विष देदे विश्वास नहीं दे, धोखा करणा बात बुरी सै,'''
'''चौड़े मै मरवा दे लोगो, कपटी की मुलाकात बुरी सै ।। टेक ।।'''

वीरों के दिल हिल सकते ना, पुष्प झड़े हुए खिल सकते ना,
चकवा चकवी मिल सकते ना, उनके हक मैं रात बुरी सै।।

बरखा बरसै लगै चौमासा, चातक नै स्वाति की आशा,
बढ़ै घास और जळै जवासा, उसके लिए बरसात बुरी सै।।

पापी पीपळ बड़ नै काटै, दया धर्म की लड़ नै काटै,
प्यारा बण के जड़ नै काटै, मित्र के संग घात बुरी सै।।

दिल खुश हो सुण प्रिये वाणी को,मुर्ख समझै ना लाभ हाणी को,
हंस अलग करै पय पाणी को, काग कुटिल की जात बुरी सै।।

सतपुरुषों कै भ्रम नहीं हो, बेशर्मों कै शर्म नहीं हो,
जहाँ इंसाफ व धर्म नहीं हो, नंदलाल कहै पंचयात बुरी सै।।
</poem>
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