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18:39, 11 जुलाई 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गन्धर्व कवि पं नन्दलाल
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'''सांग:- विराट पर्व: द्रोपदी-भीम संवाद (अनुक्रमांक-1)
'''कौण सुणै किसनै कहदूं, एक ऐसी बात हुई सै हो हो मेरे राम,'''
'''किसे बैरी मै भी मत बणियो, जो म्हारै साथ हुई सै हो हो मेरे राम ।। टेक ।।'''
ना बोले ना बतलाये ना फेर मिलण पाये हो,
बैठी की बैठी रहगी ना हाथ हिलण पाये हो,
छिदी छिदी छांट पड़ैं ना धान सीलण पाये हो,
जल घटग्या मृणाल जलै ना कंज खिलण पाये हो,
रवि अस्त होग्या मेरे लेखै दिन की रात हुई सै हो हो मेरे राम।।
होणहार बलवान घणी मनै दिन धोली छलगी हो,
ओर किसे का दोष नहीं तकदीर जली ढलगी हो,
सोच फिकर स्सपंज रंज दुख मै काया जलगी हो,
फणी मरै सिर फोड़ मणी ज्युं रेते मै रलगी हो,
अण्डया नै बिल्ली खागी मुर्गी नै खबात हुई सै हो हो मेरे राम।।
जिसनै मनै दई घुटी वा दाई भी मरीयो,
घर का म्हारा पुरोहित मरै जल्या नाई भी मरीयो,
माँ मरै बापू भी मरै और भाई भी मरीयो,
कुटुम्ब कबीला चाचा ताऊ ताई भी मरीयो,
लूट लई परमेश्वर नै सब ढाल अनाथ हुई सै हो हो मेरे राम।।
'''दौड़:-'''
सुनो पति मै नार सती बुरी गति मेरी दई बणा,
बालम तुमको कोन्या मालम जालम कितना जुल्म करया,
कौण सुणै किसनै कहदुं कहणे मै कोय फायदा ना,
रहण दे हो जाण दे हो मेरी के बुझोगे बात,
बीरां के दुख नै के जाणै मर्द जले की जात,
मै जाणु मर्दां के छल नै, प्यारे बणकै काटै गल नै,
कोड करी थी राजा नल नै साड़ी गैल खुभात,
दमयन्ति नै छोड़ डिगरग्या सुती आधी रात,
ध्यान लगा कै सुण ले वाणी, जग मै समय आवणी जाणी,
हरीशचन्द्र की राणी जा काशी मै बिकगी साथ,
रामचंद्र नै त्याग दई वा सीता जग की मात,
के जीऊं मै मरी पड़ी कीचक नै मारी लात,
इतनी कहकै रोवण लागी, आँसू तै मुख धोवण लागी,
दिल के झगड़े झोवण लागी, बात मर्म की टोहण लागी,
अपना शरीर लकोवण लागी, रस मै विष चोवण लागी,
मरज्यागी कुमलागी, आगी लागी चोट हो गए घा,
यो भाग लिख्या सै माड़ा, दुख मरणा-भरणा ध्याड़ा,
यो लड़ग्या सर्प घुराड़ा, कोय साधु ना कनफाड़ा,
ना लगै दर्द कै झाड़ा, मोटा होया कबाड़ा,
मैं ले लुंगी रंडसाड़ा, माड़ा लिन्हा भाग लिखा,
फल लागण की आस नहीं ये बढ़ती बेल कतरगे,
बंधी बुहारी थी इब न्यारे-न्यारे तार बिखरगे,
पाँचा नै परणाई थी मेरी ओड़ के पाँचू मरगे,
डाँगर खां ना ढोर बणा दी सीरसम कैसी तुड़ी,
फल लागण की आस नहीं कतरकै बेल झरुड़ी,
मेरै लेखै पाँचू मरगे मै थारै ना की फोड़ूं चुड़ी,
फेर द्रोपदी भरी रोष मै कहण लगी कोरी-कोरी,
अब पछताये होता क्या कर से छूट गई डोरी,
मात पिता नै जुल्म करे छोरी संग ब्याह दी छोरी,
लाल मिलैगा किसै जगह पै कोण परखैगा बिन जोहरी,
नामर्दां कै पीछै लाकै रेरे माटी दई बणा,
कदे बला ले सभा बीच मै नग्न करै लें नाच नचा,
तारैं साड़ी करै उघाड़ी माड़ी बात समझ मतना,
बोली की वा गोली भरकै भीमसेन पै दई चला,
भीमसेन सुण पाई,दारू मै आग लगाई,
वो कहण लग्या बलदाई,मेरै होती नहीं समाई,
चुपकी होज्या द्रोपदी तु बंद कर ले जुबान,
फेर जै बोली सै तो तेरै शरीर मै छोडूं ना जान,
रोष मै भरकै गरजण लाग्या भीमसेन बलवान,
कहते केशोराम नाम लेणे से होता है कल्याण,
विधि वशिष्ठ शक्ति पाराशर के सुत व्यास हुये हो,
सेढु लक्ष्मण गोपाल के शिष्य शंकरदास हुये हो,
गाँव जटोली की चटशाला मै पास हुये हो,
कुन्दनलाल गुरु को गाणे के अभ्यास हुये हो,
नंदलाल थारी कविताई जग मै, विख्यात हुई सै हो हो मेरे राम ।।
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