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अशान्त मन ! / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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01:39, 19 जुलाई 2018
रहे प्यासे अधर
लौटा सागर
दे
देके
खाली गागर,
चुप न बैठो
कुछ तो है करना
वीरबाला
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