Changes

तिमिर ढलेगा / गोपालदास "नीरज"

121 bytes removed, 15:27, 19 जुलाई 2018
|संग्रह=
}}
<poem>मेरे देश उदास न हो, फिर दीप जलेगा, तिमिर ढलेगा!<br><br>
यह जो रात चुरा बैठी है चांद सितारों की तरुणाई,<br>बस तब तक कर ले मनमानी जब तक कोई किरन न आई,<br>खुलते ही पलकें फूलों की, बजते ही भ्रमरों की वंशी<br>छिन्न-भिन्न होगी यह स्याही जैसे तेज धार से काई,<br>तम के पांव नहीं होते, वह चलता थाम ज्योति का अंचल<br>मेरे प्यार निराश न हो, फिर फूल खिलेगा, सूर्य मिलेगा!<br>मेरे देश उदास न हो, फिर दीप जलेगा, तिमिर ढलेगा!<br><br>
सिर्फ भूमिका है बहार की यह आंधी-पतझारों वाली,<br>किसी सुबह की ही मंजिल है रजनी बुझे सितारों वाली,<br>उजड़े घर ये सूने आंगन, रोते नयन, सिसकते सावन,<br>केवल वे हैं बीज कि जिनसे उगनी है गेहूं की बाली,<br>मूक शान्ति खुद एक क्रान्ति है, मूक दृष्टि खुद एक सृष्टि है<br>मेरे सृजन हताश न हो, फिर दनुज थकेगा, मनुज चलेगा!<br>मेरे देश उदास न हो, फिर दीप जलेगा, तिमिर ढलेगा!<br><br>
व्यर्थ नहीं यह मिट्टी का तप, व्यर्थ नहीं बलिदान हमारा,<br>व्यर्थ नहीं ये गीले आंचल, व्यर्थ नहीं यह आंसू धारा,<br>है मेरा विश्वास अटल, तुम डांड़ हटा दो, पाल गिरा दो,<br>बीच समुन्दर एक दिवस मिलने आयेगा स्वयं किनारा,<br>मन की गति पग-गति बन जाये तो फिर मंजिल कौन कठिन है?<br>मेरे लक्ष्य निराश न हो, फिर जग बदलेगा, मग बदलेगा!<br>मेरे देश उदास न हो, फिर दीप जलेगा, तिमिर ढलेगा!<br><br>
जीवन क्या?-तम भरे नगर में किसी रोशनी की पुकार है,<br>ध्वनि जिसकी इस पार और प्रतिध्वनि जिसकी दूसरे पार है,<br>सौ सौ बार मरण ने सीकर होंठ इसे चाहा चुप करना,<br>पर देखा हर बार बजाती यह बैठी कोई सितार है,<br>स्वर मिटता है नहीं, सिर्फ उसकी आवाज बदल जाती है।<br>मेरे गीत उदास न हो, हर तार बजेगा, कंठ खुलेगा!<br>मेरे देश उदास न हो, फिर दीप जलेगा, तिमिर ढलेगा!<br><br/poem>