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जुड़ाव / लक्ष्मीनारायण रंगा

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|संग्रह=सावण फागण / लक्ष्मीनारायण रंगा
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<poem>
जणै
किणीं आंख रा आंसू
म्हारी
आंखड़ल्यां मांय
घुळ जावै,
जणैं
कैई हिरदै रो दरद
म्हारै
काळजे री कुळण
बण जावै,

जणैं
कैई री हार
म्हारै
जिनगाणी रै पगां नै
थका देवै,
जणै
कैई रो भार
म्हारै
मन रो भार
बण जावै
जणै
किणीं रै मन रो सुख
म्हारै
होठां री मैन्दियां, मुळक
रच जावै,
तो हुवै पतियारो कै
अजै तांई
मिनख-मिनख सूं
पूरी तरियां कोनी टूटयो,
कठैई न कठैई
गैराई में जुड़ियोड़ो है
</poem>
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