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16:50, 24 जुलाई 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजेन्द्र जोशी
|अनुवादक=
|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
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<poem>
म्हारा इस्ट, सुण!
म्हैं नीं जाणूं थनै
म्हारा माईत आवता
उणां री परंपरा निभावूं।
कांई है थारी जात
किसै गोत्र रो है
अबै टैम आयगी
थनै बोलणो पड़सी।
बांध माथै रै पंछियो
गळै घाल लियै गमछियो
उछळ-कूद करता थकां
थनै आपरो बतावै।
नीं आ सकूं थारै कनै
किणनै कैवूं
पग-पग पसर्योड़ा पड़्या है
थारा अणथाग ठेकैदार।
बजावणी पड़सी बंसरी
चलावणो पड़सी सुदरसण-चक्र
खोलणी पड़सी तीजी आंख
सुण म्हारा इस्ट!
म्हारा इस्ट!!
</poem>
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