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बरस! / राजेन्द्र जोशी

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|संग्रह=कद आवैला खरूंट ! / राजेन्द्र जोशी
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<poem>
इयां ई फेरूं आईजै
अेकली
मत आईजै नागोरण सागै
भोर री बगत
भाजती, मुळकती
कीं तिरस बुझाई जमीं री
बरसणै सूं।

जेठ सूं मन कर्यो
आसाढ-सावण भूलै मती
भादवो उफतायै मती।

उडीक किरसां री
नीं दूध देवण आळी डावड़ी री
आभै भेळा रमणियां कागला अर कोयलड़ी री
दुभांत जिनावरां री।

हिचका मत खाईजै
पैलड़ी गळी
नीं थमणो—
मारग देख लीनो
बदळणो कोनी दूजो
फकत उडीकूं थनै
बरस, बरस, बरस!
</poem>
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